अपने परिवार, परिजन, मित्र गण, देश, माटी, गुरुजन से कोसों दूर इस परदेश में जहाँ ना अपनी भाषा की खुशबू, ना रिश्तों की गरमाहट, ना अपने पर्व-त्योहार का उमंग | रोजी-रोटी, जीवन की आपा-धापी में कहीं जीवन यूँही न गुजर जाए …. इस विदेशी माटी पे भी अपने ठेठ बिहारी, पूर्वांचली, भोजपुरी, अंगिका, मगही, मैथिली अंदाज को जीवित रखना चाहते हैं | अपने लिट्टी-चोखा, चूड़ा -दही, फगुआ, तिलसंक्रान्त... का आनंद सांस्कृतिक परिवार के साथ चाहते हैं तो इस ग्रुप (ksmobihari@gmail.com) से जुड़िये और अपने सांस्कृतिक विरासत को सम्हाल कर अपने अगले पीढ़ी तक पहुंचाने में सहभागी बनें |